“शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए जमाना क्या कहता है, अब कोई मतलब नहीं रहा, सिर्फ तन्हाई है साथ मेरे, और कोई याद नहीं रहा। मैं पत्थर हूँ मुझे खुद से भी मोहब्बत नहीं है। वो महफ़िल में तन्हा-तन्हा चिल्ला रहे थे। इन में इक रम्ज़ https://youtu.be/Lug0ffByUck